Swami Amalanand
 

 

स्वामी  स्वरूपानंदांची बोध वचने

 

| खरा परमार्थ परिस्थितीत बदल घडवून सुखाची प्राप्ती करून देत नसून
प्रत्येक प्राप्त परिस्थितीत सुखाने भोगण्याची कला शिकवीत असतो |

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| नाथिले ने घे विरूध्द आथिले घे |

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| अनुभव पाहिजे ना? तर अभ्यास करा |

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अभ्यास ! अभ्यास !! अभ्यास !!!

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| जितकी भक्ति तितकी प्राप्ति |

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| साधके सर्वदा असावे सावध |

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| गुरूकृपेवीण नाही आत्मज्ञान |

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| भाव तसा देव |

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| संसारी दक्ष आणि परमार्थी  लक्ष |

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| सतत अंतरी करी सोऽहम् ध्यान |

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| प्राप्तीची चाड वाहसी आणि अभ्यासी लक्ष न देसी |

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| बैसोनी एकांती करी सोऽहम् ध्यान
 तेणे तुझे मन स्थिरावेल |

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| गुरूतोचि देव ऐसा ठेवी भाव |

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| सगुण - निर्गुण एकरूप जाण |

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स्वामी म्हणे झाले  कृतार्थ जीवन |
सदगुरू चरण – उपासिता | |

 

संदर्भ ग्रंथ

स्वरूपामल ज्ञानांमृत - श्री पु. ल. फडके (स्वामी सहजानंद)

 

 

स्वामी स्वरूपानंदाचि बोध वचने समाप्त

 

 

     
हृदयस्थ स्वामी अमलानंद यांचे चरणी अर्पण